तुझे लोग गुनगुनाएँगे
किसी किताब में सिमटी हुई ग़ज़ल की तरह
न घर में बैठ तुझे लोग गुनगुनाएँगे
तू इन्कलाब है किस्मत संवार सकती है
ये जंगबाज तेरी पालकी उठाएंगे
ये तेरी उम्र, तेरा जोश, ये तेरे तेवर
बुझे दिलों में नया जलजला जगाएंगे
फटी जमीन तो शोले उठेंगे सागर से
कहाँ तलक वो तेरा हौसला दबायेंगे
झुका-झुका के कमर तोड़ दी गई जिनकी
वो आज मिलके ज़माने का सर झुकायेंगे
( हिंदुस्तान दैनिक लखनऊ में प्रकाशित )
-वीरेंद्र वत्स
न घर में बैठ तुझे लोग गुनगुनाएँगे
तू इन्कलाब है किस्मत संवार सकती है
ये जंगबाज तेरी पालकी उठाएंगे
ये तेरी उम्र, तेरा जोश, ये तेरे तेवर
बुझे दिलों में नया जलजला जगाएंगे
फटी जमीन तो शोले उठेंगे सागर से
कहाँ तलक वो तेरा हौसला दबायेंगे
झुका-झुका के कमर तोड़ दी गई जिनकी
वो आज मिलके ज़माने का सर झुकायेंगे
( हिंदुस्तान दैनिक लखनऊ में प्रकाशित )
-वीरेंद्र वत्स
टिप्पणियाँ
चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है.......भविष्य के लिये ढेर सारी शुभकामनायें.
कॄप्या word verification हटा दें टिप्प्णी करने में सुविधा होती है. आभार
गुलमोहर का फूल
कहाँ तलक वो तेरा हौसला दबायेंगे
bahut umda. badhai, blog jagat men swagat hai.
लिखते रहिये
चिटठा जगत मे आप का स्वागत है
गार्गी