आप बस आप...
आप बस आप खबर आपकी हजारों को
आपने दी है जबां बेजबां नज़ारों को
शोख परदे में कभी और कभी बेपरदा
कौन समझाए हमें इन जवां इशारों को
आपके गाँव में जलते हैं सभी इन्सां से
हाँ सजाते हैं दिलो-जान से मजारों को
बेवजह गैर से इन्साफ किसलिए मांगें
जबकि उठना है जहाँ से वफ़ा के मारों को
चमन में आज भड़कते हैं हर तरफ शोले
क्या बचायेगा कोई आग से बहारों को
(हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
आपने दी है जबां बेजबां नज़ारों को
शोख परदे में कभी और कभी बेपरदा
कौन समझाए हमें इन जवां इशारों को
आपके गाँव में जलते हैं सभी इन्सां से
हाँ सजाते हैं दिलो-जान से मजारों को
बेवजह गैर से इन्साफ किसलिए मांगें
जबकि उठना है जहाँ से वफ़ा के मारों को
चमन में आज भड़कते हैं हर तरफ शोले
क्या बचायेगा कोई आग से बहारों को
(हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
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