...वहां प्यार की बस्ती थी
जहाँ राख का ढेर लगा है वहां प्यार की बस्ती थी
यहाँ बसी थी खुशी ईद की, यहाँ फाग की मस्ती थी
सबके घर में अमन-चैन था, सबके थे परिवार सुखी
सबके अपने तौर-तरीके, सबकी अपनी हस्ती थी
नफरत भरी पड़ी एक दिन ज्वाला बनकर टूट पड़ी
इंसानों की जान चुनावी राजनीति से सस्ती थी
अपनी सत्ता अपनी कुर्सी अपने रुतबे की खातिर
वोटर को ही मार दिया, यह कैसी वोटपरस्ती थी
अबकी गाँव गया तो मैंने यह अजीब मंज़र देखा
नेता जीता मगर वोटरों की आंखों में पस्ती थी
कितने कुनबे और जलेंगे, कितने सपने होंगे खाक
यही गिनाने को शायद चैनल की आँख तरसती थी
( हिंदुस्तान दैनिक लखनऊ में प्रकाशित )
-वीरेन्द्र वत्स
यहाँ बसी थी खुशी ईद की, यहाँ फाग की मस्ती थी
सबके घर में अमन-चैन था, सबके थे परिवार सुखी
सबके अपने तौर-तरीके, सबकी अपनी हस्ती थी
नफरत भरी पड़ी एक दिन ज्वाला बनकर टूट पड़ी
इंसानों की जान चुनावी राजनीति से सस्ती थी
अपनी सत्ता अपनी कुर्सी अपने रुतबे की खातिर
वोटर को ही मार दिया, यह कैसी वोटपरस्ती थी
अबकी गाँव गया तो मैंने यह अजीब मंज़र देखा
नेता जीता मगर वोटरों की आंखों में पस्ती थी
कितने कुनबे और जलेंगे, कितने सपने होंगे खाक
यही गिनाने को शायद चैनल की आँख तरसती थी
( हिंदुस्तान दैनिक लखनऊ में प्रकाशित )
-वीरेन्द्र वत्स
टिप्पणियाँ
Kum se kum kisi ko to chandbadh kavita ki chinta hai........... verna atukant kavita likhna to chai peene jaisa hai aaj kul