राजा का सपना

किसान जैसे अपने खेतों की फसल काटता है उसी तरह नेता वोटों की फसल काटता है, वह जनता को अपनी जागीर समझता है. चुनावी मौसम में एक नेता की तैयारी देखिये-

राजा के सीने में उठता ज्वार-
बुआई कर ली हमने
सही समय पर!
बाँट दिए सब खेत,
मेड़ पर मिट्टी डाली.
सारी-सारी रात चलाकर लिप्सा का हल
बँटे हुए खेतों में
की भरपूर जुताई
फिर बोए विष बीज घृणा-कुंठा-नफरत के.
बीज उगे, बढ़ चले
खिलीं राजा की बांछें
जोड़-तोड़ की कुटिल साधना सफल हो गई!
नफ़रत की चिनगारी भड़की और अचानक
फैल गई सारी बस्ती में
धू-धू कर जल उठे खेत-खलिहान-गाँव-घर.
राजा का सपना है सबकुछ स्वाहा होले
राज चले बेरोक-टोक, निर्विघ्न-निरंकुश.

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