अब उन्हें इस ज़मीन पर लाओ...
लोग यूं बेजबान होते हैं
दर्द पीकर जवान होते हैं
क्यूं सुलगती सुबह की आँखों में
बेबसी के निशान होते हैं
हैं ये बेजान नींव की ईंटें
हाँ इन्हीं से मकान होते हैं
ये दिखाती हैं खिसकने का हुनर
जब कभी इम्तिहान होते हैं
चाँद-तारों की बात मत छेडो
वो खयालों की शान होते हैं
अब उन्हें इस जमीन पर लाओ
जो सरे आसमान होते हैं
( युग तेवर में प्रकाशित )
-वीरेन्द्र वत्स
दर्द पीकर जवान होते हैं
क्यूं सुलगती सुबह की आँखों में
बेबसी के निशान होते हैं
हैं ये बेजान नींव की ईंटें
हाँ इन्हीं से मकान होते हैं
ये दिखाती हैं खिसकने का हुनर
जब कभी इम्तिहान होते हैं
चाँद-तारों की बात मत छेडो
वो खयालों की शान होते हैं
अब उन्हें इस जमीन पर लाओ
जो सरे आसमान होते हैं
( युग तेवर में प्रकाशित )
-वीरेन्द्र वत्स
टिप्पणियाँ
बहुत जरूरी है जमीन पर लाना -
सार्थक आह्वान --
हाँ इन्हीं से मकान होते हैं
बहुत सही ...बेजान इतने मजबूत नींव का आधार होती है ...सुन्दर अभिव्यक्ति ..!!
जब कभी इम्तिहान होते हैं
-बहुत बेहतरीन रचना, बधाई.
वो खयालों की शान होते हैं
...क्या लाइन लिखी है. मजा आ गया.