चांदनी संवरती है...
रेशमी घटाओं में चाँद मुस्कराता है
नर्म-नर्म ख्वाबों को नींद से जगाता है
थोड़ी-थोड़ी मदहोशी थोड़ी-थोड़ी बेताबी
हाँ यही मोहब्बत है ये समां बताता है
चांदनी संवरती है आसमां के आँगन में
सर्द झील का पानी आईना दिखाता है
मनचली हवाओं से पूछता है सन्नाटा
कौन आज जंगल में बांसुरी बजाता है
शोख़ रातरानी यूं झूमती है शाखों में
जैसे कोई दिलवर को बांह में झुलाता है
यूं मना रहा कोई आसमां में दीवाली
इक दिया बुझाता है सौ दिए जलाता है
( हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित )
-वीरेंद्र वत्स
नर्म-नर्म ख्वाबों को नींद से जगाता है
थोड़ी-थोड़ी मदहोशी थोड़ी-थोड़ी बेताबी
हाँ यही मोहब्बत है ये समां बताता है
चांदनी संवरती है आसमां के आँगन में
सर्द झील का पानी आईना दिखाता है
मनचली हवाओं से पूछता है सन्नाटा
कौन आज जंगल में बांसुरी बजाता है
शोख़ रातरानी यूं झूमती है शाखों में
जैसे कोई दिलवर को बांह में झुलाता है
यूं मना रहा कोई आसमां में दीवाली
इक दिया बुझाता है सौ दिए जलाता है
( हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित )
-वीरेंद्र वत्स
टिप्पणियाँ
कौन आज जंगल में बांसुरी बजाता है
वाह क्या बात कही आपने !
अति मनमोहन रचना !!
बधाई !
हाँ यही मोहब्बत है ये समां बताता है
बहुत खुब। लाजवाब रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई.........
Dietrich Huberstrauken
http://www.bloggrid.net
Many thanks!