ज़ंग करते हुए नगमात...

ये उबलते हुए जज्बात कहाँ ले जाएँ
ज़ंग करते हुए नगमात कहाँ ले जाएँ

रोज़ आते हैं नए सब्जबाग आंखों में
ये सियासत के तिलिस्मात कहाँ ले जाएँ

अमीर मुल्क की मुफलिस जमात से पूछो
उसके हिस्से की घनी रात कहाँ ले जाएँ

हम गुनहगार हैं हमने तुम्हें चुना रहबर
अब जमाने के सवालात कहाँ ले जाएँ

सारी दुनिया के लिए मांग लें दुआ लेकिन
घर के उलझे हुए हालात कहाँ ले जाएँ
( युग तेवर में प्रकाशित )

-वीरेन्द्र वत्स

टिप्पणियाँ

Mithilesh dubey ने कहा…
वाह क्या कहने आपके, आपने अपने जज्बातो को लाजवाब तरीके से शब्दो में पिरोया है, बहुत-बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए
Yogesh Verma Swapn ने कहा…
behatareen.

सारी दुनिया के लिए मांग लें दुआ लेकिन
घर के उलझे हुए हालात कहाँ ले जाएँ

badhai.
prashant ने कहा…
ummda lekhan.....

badhai.
Neeraj Mishra ने कहा…
blog par aane ke liye dher sari subhkamna
उर्दू का अच्छा प्रयोग करते हैं आप
दिल जीत आपने महोदय |
कोटिशः साधुवाद एवं हार्दिक बधाई |
जय हो ...
चित्रांश ने कहा…
बहुत सुंदर वीरेन्द्र जी

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