...मौसम की शरारत है
कातिल की हुकूमत है कातिल की अदालत है
फरियाद करें किससे हर ओर क़यामत है
आकाश के पिंजरे में बाँधा है परिंदों को
कहने को अभी इनकी परवाज की हालत है
बादल भी बरसते हैं सूरज भी दहकता है
बारिश तो नहीं है ये मौसम की शरारत है
एहसान रकीबों का रिश्ता तो निभाते हैं
चाहत से भली यारो दुश्मन की अदावत है
बसता है उजड़ता है, जुड़ता है बिखरता है
एहसास मेरे दिल का लोगों की तिजारत है
(हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
फरियाद करें किससे हर ओर क़यामत है
आकाश के पिंजरे में बाँधा है परिंदों को
कहने को अभी इनकी परवाज की हालत है
बादल भी बरसते हैं सूरज भी दहकता है
बारिश तो नहीं है ये मौसम की शरारत है
एहसान रकीबों का रिश्ता तो निभाते हैं
चाहत से भली यारो दुश्मन की अदावत है
बसता है उजड़ता है, जुड़ता है बिखरता है
एहसास मेरे दिल का लोगों की तिजारत है
(हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
टिप्पणियाँ
एहसास मेरे दिल का लोगों की तिजारत है "
इन पंक्तियों ने खासा आकर्षित किया । पूरी गजल बेहतर है । आभार ।
एहसास मेरे दिल का लोगों की तिजारत है
-बहुत खूब!!
बारिश तो नहीं है ये मौसम की शरारत है
वीरेंदर जी इस निहायत ही खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कबूल फरमाएं...सारे शेर बेहद असरदार हैं...वाह
नीरज
बसता है उजड़ता है, जुड़ता है बिखरता है
एहसास मेरे दिल का लोगों की तिजारत है,,
behatareen rachna. badhaai.