अब नहीं और...
दिल का हर दर्द भला कैसे संभाला जाये
अब नहीं और ये उम्मीद पे टाला जाये
अब तो हर रात चरागों से धुआं उठता है
सर्द बेजार धुआं लौ में न ढाला जाये
सुर्ख नज़रों का बयां इनकी जबानी सुनिए
इनका हर हाल न लफ्जों में निकाला जाये
खून इंसान का पीकर जो इश्क जिन्दा है
ऐसे शैतान को किस गाँव में पाला जाये
अब तो हर साल नहीं, रोज़ जलाकर होली
इश्क का मारा हुआ आग में डाला जाये
(युग तेवर में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
अब नहीं और ये उम्मीद पे टाला जाये
अब तो हर रात चरागों से धुआं उठता है
सर्द बेजार धुआं लौ में न ढाला जाये
सुर्ख नज़रों का बयां इनकी जबानी सुनिए
इनका हर हाल न लफ्जों में निकाला जाये
खून इंसान का पीकर जो इश्क जिन्दा है
ऐसे शैतान को किस गाँव में पाला जाये
अब तो हर साल नहीं, रोज़ जलाकर होली
इश्क का मारा हुआ आग में डाला जाये
(युग तेवर में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
टिप्पणियाँ
सर्द बेजार धुआं लौ में न ढाला जाये
-बेहतरीन!!