रोटी और बारूद
हथियारों की होड़ आज जा पहुँची है अम्बर में,
महानाश का धूम उमड़ता दुनिया के घर-घर में.
खरबों की संपत्ति शत्रुता पर स्वाहा होती है,
मानवता असहाय बेड़ियों में जकड़ी रोती है.
चंद सिरफिरों की करनी पूरी पीढ़ी भरती है,
कीड़ों सा जीवन जीती है कुत्तों सी मरती है.
युद्ध समस्या स्वयं समस्या इससे क्या सुलझेगी,
रोटी की मारी जनता बारूदों में उलझेगी.
अणु के घातक अस्त्र जुटाए किस पर बरसाने को?
चील-गिद्ध भी नहीं बचेंगे तेरा शव खाने को!!!
(युग तेवर में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
महानाश का धूम उमड़ता दुनिया के घर-घर में.
खरबों की संपत्ति शत्रुता पर स्वाहा होती है,
मानवता असहाय बेड़ियों में जकड़ी रोती है.
चंद सिरफिरों की करनी पूरी पीढ़ी भरती है,
कीड़ों सा जीवन जीती है कुत्तों सी मरती है.
युद्ध समस्या स्वयं समस्या इससे क्या सुलझेगी,
रोटी की मारी जनता बारूदों में उलझेगी.
अणु के घातक अस्त्र जुटाए किस पर बरसाने को?
चील-गिद्ध भी नहीं बचेंगे तेरा शव खाने को!!!
(युग तेवर में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
टिप्पणियाँ
रोटी की मारी जनता बारूदों में उलझेगी.
समय पर चोट करती रचना ......बहुत सुंदर.....!!
nice one...