जिंदगी के आईने में अक्स अपना देखिए

जिंदगी के आईने में अक्स अपना देखिए/
उम्र के सैलाब का चढ़ना-उतरना देखिए/

बालपन का वो मचलना, वो छिटकना गोद से/
हर अदा पे माँ की आँखों का चमकना देखिए/

वो जवानी की मोहब्बत, वो पढ़ाई का बुखार/
ख्वाहिशों का ख्वाहिशों के साथ लड़ना देखिए/

मंज़िलों की खोज में लुटता रहा जी का सुकून/
इक मुक़म्मल शख्स का तिल-तिल बिखरना देखिए/
     
अब बुढ़ापा ले रहा है जिंदगी भर का हिसाब/
वक़्त का चुपचाप मुट्ठी से सरकना देखिए/
-वीरेन्द्र वत्स

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