उन्हें भी वार करना आ गया है...

अदब से सिर झुकाए जो खड़े थे,
उन्हें भी वार करना आ गया है.

समेटो जालिमो दूकान अपनी,
उन्हें व्यापार करना आ गया है.

दिलों में फड़फड़ाती आरज़ू का,
उन्हें इज़हार करना आ गया है.

तुम्हारी बात पर जो मर-मिटे थे,
उन्हें इनकार करना आ गया है.

कि अपने वक़्त पर अपनी जमीं पर,
उन्हें अधिकार करना आ गया है.

(युग तेवर में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स

टिप्पणियाँ

M VERMA ने कहा…
अदब से सिर झुकाए जो खड़े थे,
उन्हें भी वार करना आ गया है.
बेहतरीन गज़ल
सुन्दर
Neeraj Rohilla ने कहा…
बहुत खूब,
पढकर मन खुश हो गया...
दिलीप ने कहा…
bahut khoob sir kya baat....
वाणी गीत ने कहा…
अदब से सर झुकाए खड़े थे ,
उन्हें भी वार करना आ गया है ...
समेटो दुकाने अपनी
उन्हें व्यापार करना आ गया है ..
बहुत बढ़िया ...!!
तुम्हारी बात पर जो मर-मिटे थे,
उन्हें इनकार करना आ गया है.

वीरेन्द्र जी इस लाजवाब ग़ज़ल के लिए मेरी दाद कबूल करें...सारे के सारे शेर कमाल के हैं...वाह
Satya Vyas ने कहा…
तुम्हारी बात पर जो मर-मिटे थे,
उन्हें इनकार करना आ गया है.


मेरे ह्रदय के करीब करीब का कोइ तार छेड दिया है आपने

सत्य
क्या कहने भाईसाब ... वाह वाह ...
छोटी बहर की खूबसूरत गजल ...
बेनामी ने कहा…
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