...इश्क साया है आदमी के लिए

दिल लगाना न दिल्लगी के लिए,
ये इबादत है ज़िन्दगी के लिए.

इश्क दाना है, इश्क पानी है,
इश्क साया है आदमी के लिए.

ये किसी एक का नहीं यारो,
ये इनायत है हर किसी के लिए.

मेरा हर लफ्ज़ है अमन के लिए,
मेरी हर साँस बंदगी के लिए,

मैं हवा के खिलाफ चलता हूँ,
सिर्फ इंसान की खुशी के लिए.

वीरेन्द्र वत्स

टिप्पणियाँ

मैं हवा के खिलाफ चलता हूँ,
सिर्फ इंसान की खुशी के लिए.


Bahut sunder.........

behtareen shabdon ke saath ek behtareen kavita......
Mithilesh dubey ने कहा…
बहुत खूब विरेन्द्र जी बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति रहीं। आप के द्वारा चयन किये गये शब्द लाजवाब होते है, और उनको बखूबी प्रयोग में भी लाते है।
Alpana Verma ने कहा…
मैं हवा के खिलाफ चलता हूँ,
सिर्फ इंसान की खुशी के लिए

bahut khoob!
बहुत achchhee gazal है.
नयी गजल, नयी तासीर ...
पढ़कर नयापन सा लगा ...
सुंदर रचना ... जय हो ...
पहली पंक्ति में 'के' दो बार आ गया है | इसे ठीक कर लीजिये ...
मेरा प्रणाम भी स्वीकार करें ...
Yogesh Verma Swapn ने कहा…
wah virendra ji ye panktian bha gain.

मैं हवा के खिलाफ चलता हूँ,
सिर्फ इंसान की खुशी के लिए.

bahut khoob.
Unknown ने कहा…
दिल लगाना न दिल्लगी के लिए,
ये इबादत है ज़िन्दगी के लिए.

khoob likha hai. bahut badhiya.
faheem khan ने कहा…
दिल लगाना न दिल्लगी के लिए,
ये इबादत है ज़िन्दगी के लिए.
..... baat me dum hai.

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