खुद पे इतना भी एतबार नहीं...
आप कुछ यूं उदास होते हैं
रेत में कश्तियाँ डुबोते हैं
खुद पे इतना भी एतबार नहीं
गैर की गलतियाँ संजोते हैं
लोग क्यूं आरजू में जन्नत की
जिंदगी का सुकून खोते हैं
जब से मज़हब में आ गए कांटे
हम मोहब्बत के फूल बोते हैं
बज्म के कहकहे बताते हैं
आप तन्हाइयों में रोते हैं
रेत में कश्तियाँ डुबोते हैं
खुद पे इतना भी एतबार नहीं
गैर की गलतियाँ संजोते हैं
लोग क्यूं आरजू में जन्नत की
जिंदगी का सुकून खोते हैं
जब से मज़हब में आ गए कांटे
हम मोहब्बत के फूल बोते हैं
बज्म के कहकहे बताते हैं
आप तन्हाइयों में रोते हैं
(युग तेवर में प्रकाशित)
-वीरेन्द्र वत्स
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