...दोस्त हर रिश्ते में थोड़ा फासला रखिये

कौन अपना है किसी से क्यों गिला रखिये,
खुद तलक पाबन्द अपना फैसला रखिये.

लोग सुनकर मुस्करायेंगे, खिसक लेंगे,
कैद सीने में ग़मों का ज़लज़ला रखिये.

आप दिल से काम लेते हैं, कयामत है,
ज़ख्मो-जिल्लत झेलने का हौसला रखिये.

टूटना फिर बिखर जाना नियति है इसकी,
किसलिए जारी वफ़ा का सिलसिला रखिये.

यूं न मिलिए प्यास मिलने की फ़ना हो जाय,
दोस्त हर रिश्ते में थोड़ा फासला रखिये.
(हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित)

-वीरेन्द्र वत्स

टिप्पणियाँ

Mithilesh dubey ने कहा…
लोग सुनकर मुस्करायेंगे, खिसक लेंगे,
कैद सीने में ग़मों का ज़लज़ला रखिये.

बहुत सही कहा आपने। बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति । इस बेहतिन रचना के लिए बहुत-बहुत बधाई.............
लोग सुनकर मुस्करायेंगे, खिसक लेंगे,
कैद सीने में ग़मों का ज़लज़ला रखिये.

Behatreen gazal sundar bhavo se bhara..bahut bahut badhayi..
बेनामी ने कहा…
bahut sahi likha hai aapne.
रंजना ने कहा…
वाह ! वाह ! वाह ! सभी शेर लाजवाब ! हकीकत को क्या खूबसूरत लब्ज़ दिए हैं आपने....

मन मुग्ध हो गया पढ़कर....आभार आपका...
Yogesh Verma Swapn ने कहा…
wah wah wah, bahut khoob., badhaai.
Chandan Kumar Jha ने कहा…
बहुत सुन्दर बहुत उम्दा लिखा है आपने । आभार ।
Satya Vyas ने कहा…
sachayi ki kavyatmak abhivyakti.
vats ji ek gustakhi karna chahunga
mujhey lagta hai aap " दोस्त हर रिश्ते में थोड़ा फैसला रखिये me faisla ki jagah fasla likhna chaha rahe the
. agar nahi to kshama prathi hoon.
satya vyas.
बहुत खूब लिखा है जनाब ... वाह
आखिरी शेर पर इक शेर याद आया कि...
कोई हाथ भी न मिलाएगा गर गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिजाज का शहर है , मियां फासले से मिला करो |

सुंदर रचना....बधाई
Unknown ने कहा…
janab sunder rachna hai...
Unknown ने कहा…
कौन अपना है किसी से क्यों गिला रखिये,
खुद तलक पाबन्द अपना फैसला रखिये.

लोग सुनकर मुस्करायेंगे, खिसक लेंगे,
कैद सीने में ग़मों का ज़लज़ला रखिये.

...सही कहा आपने. कुछ बात अपने तक सीमित रखने में ही भलाई है.

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