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उन्हें भी वार करना आ गया है...

अदब से सिर झुकाए जो खड़े थे, उन्हें भी वार करना आ गया है. समेटो जालिमो दूकान अपनी, उन्हें व्यापार करना आ गया है. दिलों में फड़फड़ाती आरज़ू का, उन्हें इज़हार करना आ गया है. तुम्हारी बात पर जो मर-मिटे थे, उन्हें इनकार करना आ गया है. कि अपने वक़्त पर अपनी जमीं पर, उन्हें अधिकार करना आ गया है. (युग तेवर में प्रकाशित) -वीरेन्द्र वत्स