tag:blogger.com,1999:blog-53527754205131883612024-03-21T07:45:33.491-07:00वीरेंद्र वत्सकवि-गीतकारShantanu Guptahttp://www.blogger.com/profile/15968415505823550156noreply@blogger.comBlogger38125tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-16038209350647914602021-03-27T02:58:00.006-07:002021-03-27T02:58:39.319-07:00तू जीत के लिए बना<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnUGiEGFrw5NXCU4-EG8iOXrG0bO7Gkbp_Fly8_XaocQO3AuXD9XpCLSulwtOk1yZtsUCztg99hY-LTmT8VgRvY9hWXkzAS8emkHx2SvjkxgWDbpqdOnQFBf0c9swNBQZdkOJBwZkZvszJ/s1080/2.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1080" height="608" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgnUGiEGFrw5NXCU4-EG8iOXrG0bO7Gkbp_Fly8_XaocQO3AuXD9XpCLSulwtOk1yZtsUCztg99hY-LTmT8VgRvY9hWXkzAS8emkHx2SvjkxgWDbpqdOnQFBf0c9swNBQZdkOJBwZkZvszJ/w635-h608/2.png" width="635" /></a></div> <br /><br /><p></p><p>प्रचंड अग्निज्वाल हो</p><p>अपार शैलमाल हो</p><p>तू डर नहीं सिहर नहीं</p><p>तू राह में ठहर नहीं</p><p><br /></p><p>ललाट यह रहे तना</p><p>तू जीत के लिए बना</p><p>तू जोश से भुजा चढ़ा</p><p>तू होश से कदम बढ़ा</p><p><br /></p><p>गगन-गगन में गांव हो</p><p>शिखर-शिखर पे पांव हो</p><p>तू आँधियों से खेल कर</p><p>तू बिजलियों से मेल कर</p><p><br /></p><p>तू कालचक्र तोड़ दे</p><p>तू रुख समय का मोड़ दे</p><p>अजेय क्रांतिवीर तू</p><p>अजेय शान्तिवीर तू</p><p><br /></p><p> -वीरेन्द्र वत्स</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-252905238387849362021-03-27T02:56:00.006-07:002021-03-27T02:56:53.926-07:00सौ दिये जलाता है<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhM59cvS8Y5vDUjomqK5Z2X81hvO_hRvbT-RrS7Nmx9OzjqrKG7fTTyEDRAdPLkCNdadB3kXojIJ263fVG9WAuuY7zmokUEKCW27rlRrhDe680T7tq2lzvQOagU5RbXPfpyIExHHVYJ0iQH/s1080/3.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhM59cvS8Y5vDUjomqK5Z2X81hvO_hRvbT-RrS7Nmx9OzjqrKG7fTTyEDRAdPLkCNdadB3kXojIJ263fVG9WAuuY7zmokUEKCW27rlRrhDe680T7tq2lzvQOagU5RbXPfpyIExHHVYJ0iQH/w606-h320/3.png" width="606" /></a></div><br /> रेशमी घटाओं में चाँद मुस्कराता है<p></p><p>नर्म-नर्म ख्वाबों को नींद से जगाता है</p><p><br /></p><p>चांदनी संवरती है आसमां के आँगन में</p><p>सर्द झील का पानी आईना दिखाता है</p><p><br /></p><p>मनचली हवाओं से पूछता है सन्नाटा</p><p>कौन आज जंगल में बांसुरी बजाता है</p><p><br /></p><p>शोख़ रातरानी यूं झूमती है शाखों में</p><p>जैसे कोई दिलवर को बांह में झुलाता है</p><p><br /></p><p>थोड़ी-थोड़ी मदहोशी थोड़ी-थोड़ी बेताबी</p><p>रंग तेरी चाहत के दिल मेरा सजाता है</p><p><br /></p><p>यूं मना रहा कोई आसमां में दीवाली</p><p>इक दिया बुझाता है सौ दिये जलाता है</p><p><br /></p><p>वीरेन्द्र वत्स</p>Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-60671787816254164152021-03-27T02:53:00.002-07:002021-03-27T02:53:42.144-07:00इश्क साया है...इश्क साया है आदमी के लिए<br />
<br />
दिल लगाना न दिल्लगी के के लिए,<br />
ये इबादत है ज़िन्दगी के लिए.<br />
<br />
इश्क दाना है, इश्क पानी है,<br />
इश्क साया है आदमी के लिए.<br />
<br />
ये किसी एक का नहीं यारो,<br />
ये इनायत है हर किसी के लिए.<br />
<br />
मेरा हर लफ्ज़ है अमन के लिए,<br />
मेरी हर साँस बंदगी के लिए,<br />
<br />
मैं हवा के खिलाफ चलता हूँ,<br />
सिर्फ इंसान की खुशी के लिए.<br />
<br />
वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-34771172233570775672021-03-27T02:53:00.000-07:002021-03-27T02:53:22.510-07:00राजा का सपनाकिसान जैसे अपने खेतों की फसल काटता है उसी तरह नेता वोटों की फसल काटता है, वह जनता को अपनी जागीर समझता है. चुनावी मौसम में एक नेता की तैयारी देखिये-<br />
<br />
राजा के सीने में उठता ज्वार-<br />
बुआई कर ली हमने <br />
सही समय पर!<br />
बाँट दिए सब खेत,<br />
मेड़ पर मिट्टी डाली.<br />
सारी-सारी रात चलाकर लिप्सा का हल<br />
बँटे हुए खेतों में <br />
की भरपूर जुताई<br />
फिर बोए विष बीज घृणा-कुंठा-नफरत के.<br />
बीज उगे, बढ़ चले<br />
खिलीं राजा की बांछें<br />
जोड़-तोड़ की कुटिल साधना सफल हो गई!<br />
नफ़रत की चिनगारी भड़की और अचानक<br />
फैल गई सारी बस्ती में<br />
धू-धू कर जल उठे खेत-खलिहान-गाँव-घर.<br />
राजा का सपना है सबकुछ स्वाहा होले<br />
राज चले बेरोक-टोक, निर्विघ्न-निरंकुश.Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-1611900522113531302021-03-27T02:06:00.001-07:002021-03-27T02:06:34.705-07:00वीरेन्द्र वत्स के दोहेझूठे झगड़े छोड़कर, चलो बढाएं ज्ञान।<br />
मुसलमान गीता पढ़े, हिन्दू पढ़े कुरान॥<br />
<br />
इतना प्यारा देश है इतने प्यारे लोग।<br />
इसे कहाँ से लग गया बँटवारे का रोग॥<br />
<br />
जाति-धर्म भाषा-दिशा प्रांतवाद की मार।<br />
टुकड़ा-टुकड़ा देश है, कौन लगाये पार॥<br />
<br />
कोई भूखा मर रहा कोई काटे माल।<br />
लोकतंत्र ही बन गया लोकतंत्र का काल॥<br />
<br />
अरबों के मालिक हुए कल तक थे दरवेश।<br />
नेता दोनों हाथ से लूट रहे हैं देश॥<br />
<br />
बारी-बारी लुट रही जनता है मजबूर।<br />
नेता हैं गोरी यहाँ, नेता हैं तैमूर॥<br />
<br />
पटा लिया परधान को, दिए करारे नोट।<br />
पन्नी बांटी गाँव में पलट गए सब वोट॥<br />
( युग तेवर में प्रकाशित )<br />
<br /><span style="background-color: white; color: #050505; font-family: "Segoe UI Historic", "Segoe UI", Helvetica, Arial, sans-serif; font-size: 15px; white-space: pre-wrap;">-वीरेन्द्र वत्स</span> Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-42558269151130391072021-03-27T01:53:00.001-07:002021-03-27T02:55:03.155-07:00मैं भारतीय<p></p><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir9vDdteq-I5KSdfKjfM3v3nG09eHQZ1HDOX4-CSx5fHOfFK643Nv2n_2zYRbusFgl7uuPzMABKDE2StSx5S0TS9ly2-mdgGNRxJL1EaKCq9EwcHrBXIYKzNR5bae1B2x9aMl5SH1KmBIm/s1080/1.png" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" data-original-height="1080" data-original-width="1080" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEir9vDdteq-I5KSdfKjfM3v3nG09eHQZ1HDOX4-CSx5fHOfFK643Nv2n_2zYRbusFgl7uuPzMABKDE2StSx5S0TS9ly2-mdgGNRxJL1EaKCq9EwcHrBXIYKzNR5bae1B2x9aMl5SH1KmBIm/w647-h320/1.png" width="647" /></a></div><br /></div><br /> मैं धधकती आग हूँ<p></p><p>मैं बरसता राग हूँ</p><p>ध्वंस हूँ निर्माण हूँ मैं</p><p>प्रेम हूँ बैराग हूँ</p><p><br /></p><p>मैं मधुर मधुमास हूँ</p><p>धड़कनों की आस हूँ</p><p>जो हृदय की पीर हर ले</p><p>वह अटल विश्वास हूँ</p><p><br /></p><p>मैं बिरह की बात हूँ</p><p>मैं मिलन की रात हूँ</p><p>स्वप्न को जो सच बना दे</p><p>मैं वही सौगात हूँ</p><p><br /></p><p>मैं धरा की आन हूँ</p><p>ज्ञान हूँ विज्ञान हूँ</p><p>विश्व का कल्याण जिसमें</p><p>वह सतत संधान हूँ</p><p><br /></p><p>भारती का लाल हूँ</p><p>मित्रता की ढाल हूँ</p><p>विकट हूँ विकराल हूँ मैं</p><p>शत्रुओं का काल हूँ</p><p><br /></p><p> -वीरेन्द्र वत्स</p><br />Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-81439835777760726622014-06-12T14:17:00.002-07:002014-06-12T14:17:58.628-07:00जिंदगी के आईने में अक्स अपना देखिए<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_52" style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14.44444465637207px; line-height: 21.46666717529297px; margin-bottom: 6px;">
जिंदगी के आईने में अक्स अपना देखिए/<br />उम्र के सैलाब का चढ़ना-उतरना देखिए/</div>
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_52" style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14.44444465637207px; line-height: 21.46666717529297px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_59" style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14.44444465637207px; line-height: 21.46666717529297px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
बालपन का वो मचलना, वो छिटकना गोद से/<br id="yui_3_9_1_17_1402607135906_63" />हर अदा पे माँ की आँखों का चमकना देखिए/</div>
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_59" style="color: #141823; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14.44444465637207px; line-height: 21.46666717529297px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
<br /></div>
<div class="text_exposed_show" id="yui_3_9_1_17_1402607135906_70" style="color: #141823; display: inline; font-family: Helvetica, Arial, 'lucida grande', tahoma, verdana, arial, sans-serif; font-size: 14.44444465637207px; line-height: 21.46666717529297px;">
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_65" style="margin-bottom: 6px;">
वो जवानी की मोहब्बत, वो पढ़ाई का बुखार/<br id="yui_3_9_1_17_1402607135906_69" />ख्वाहिशों का ख्वाहिशों के साथ लड़ना देखिए/</div>
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_65" style="font-size: 14.44444465637207px; margin-bottom: 6px;">
<br /></div>
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_48" style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
मंज़िलों की खोज में लुटता रहा जी का सुकून/<br id="yui_3_9_1_17_1402607135906_73" />इक मुक़म्मल शख्स का तिल-तिल बिखरना देखिए/</div>
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_48" style="font-size: 14.44444465637207px; margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
</div>
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_81" style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
अब बुढ़ापा ले रहा है जिंदगी भर का हिसाब/<br />वक़्त का चुपचाप मुट्ठी से सरकना देखिए/</div>
<div id="yui_3_9_1_17_1402607135906_45" style="margin-bottom: 6px; margin-top: 6px;">
-वीरेन्द्र वत्स</div>
</div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-69909525985428258922013-08-19T13:38:00.005-07:002013-08-19T13:38:57.760-07:00लबों पर गालियाँ<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div class="text_exposed_root text_exposed">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}">सभा में तालियाँ हैं और हम हैं <br />लबों पर गालियाँ हैं और हम हैं <br /><br />वही सपने दिखाते आ रहे हैं साठ सालों से <br />सियासी थालियाँ हैं और हम हैं <br /><br />उन्हें है धर्म से मतलब, उन्हें है जाति की चिन्ता <br />दरकती डालियाँ हैं और हम हैं <span class="text_exposed_hide">...</span><span class="text_exposed_show"><br /><br />कहीं डाका, कहीं दंगा, कहीं आतंक का साया <br />लहू की नालियाँ हैं और हम हैं </span></span></div>
<div class="text_exposed_root text_exposed">
<span class="userContent" data-ft="{"tn":"K"}"><span class="text_exposed_show">वीरेन्द्र वत्स</span></span></div>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-85940359064492596422013-08-19T13:28:00.001-07:002013-08-19T13:28:23.882-07:00राजकाज<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
अजब नेता, अजब अफसर <br />तरक्की का अजब खाका<br />इन्हें ठेका, उन्हें पट्टा <br />यहाँ चोरी, वहां डाका <br />
बजट जितना, घोटाला कर गए उससे कहीं ज्यादा <br />गया जो जेल प्यादा था<br />बचे बेदाग़ फिर आक़ा <br />
मिली है जीत कुनबे को, बधाई हो-बधाई हो <br />जियो भैया, जियो बाबू<br />जियो लल्ला, जियो काका<br />
हुकूमत क्या मिली, सारा खजाना अब इन्हीं का है <br />बिकी मिट्टी, बिका पानी<br />बिका नुक्कड़, बिका नाका<br />
वहां तो महफ़िलों का दौर है, प्याले छलकते हैं <br />यहाँ है टीस, लाचारी<br />सुबह से रात तक फाक़ा <br />
वीरेन्द्र वत्स </div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-75179263309000033092013-05-30T13:29:00.001-07:002013-05-30T13:29:42.930-07:00<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<h3 class="post-title entry-title" itemprop="name">
<h3 class="post-title entry-title" itemprop="name">
<a href="http://hindipoemsvirendravats.blogspot.in/2009/09/blog-post_07.html">खुद पे इतना भी एतबार नहीं...</a> </h3>
<div class="post-title entry-title" itemprop="name">
आप कुछ यूं उदास होते हैं<br />रेत में कश्तियाँ डुबोते हैं<br /><br />खुद पे इतना भी एतबार नहीं <br />गैर की गलतियाँ संजोते हैं<br /><br />लोग क्यूं आरजू में जन्नत की<br />जिंदगी का सुकून खोते हैं<br /><br />जब से मज़हब में आ गए कांटे <br />हम मोहब्बत के फूल बोते हैं<br /><br />बज्म के कहकहे बताते हैं<br />आप तन्हाइयों में रोते हैं</div>
<div class="post-title entry-title" itemprop="name">
<br />(युग तेवर में प्रकाशित)<br /><br />-वीरेन्द्र वत्स </div>
</h3>
</div>
Unknownnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-82962554664560649202010-04-16T06:30:00.000-07:002010-04-16T06:30:23.440-07:00उन्हें भी वार करना आ गया है...अदब से सिर झुकाए जो खड़े थे,<br />
उन्हें भी वार करना आ गया है.<br />
<br />
समेटो जालिमो दूकान अपनी,<br />
उन्हें व्यापार करना आ गया है.<br />
<br />
दिलों में फड़फड़ाती आरज़ू का,<br />
उन्हें इज़हार करना आ गया है.<br />
<br />
तुम्हारी बात पर जो मर-मिटे थे,<br />
उन्हें इनकार करना आ गया है.<br />
<br />
कि अपने वक़्त पर अपनी जमीं पर, <br />
उन्हें अधिकार करना आ गया है.<br />
<br />
(युग तेवर में प्रकाशित)<br />
-वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-35843147651573804192009-12-31T22:11:00.000-08:002009-12-31T22:11:37.376-08:00नया वर्ष नई मंजिलेंचलें आप सूरज के रथ पर<br />
बनें उजाले के प्रतिमान;<br />
घर-आँगन खुशियों से भर दे<br />
नए वर्ष का स्वर्ण विहान.<br />
<br />
नए साल में नई मंजिलें<br />
कदम आपके चूमें,<br />
भाग्य-लक्ष्मी की बाहों में <br />
आप खुशी से झूमें.<br />
-वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com7tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-81005263814372017342009-11-27T04:48:00.000-08:002009-11-27T04:49:50.277-08:00...सुन सको तो सुनोइश्क का दर्द जाम के किस्से वो ग़ज़ल है गए ज़माने की <br />
वत्स आवाज़ आम जनता की, बात उसकी नए ज़माने की<br />
<br />
... ... ...<br />
<br />
ये दास्ताने बगावत है सुन सको तो सुनो<br />
तुम्हीं से उनकी अदावत है सुन सको तो सुनो<br />
<br />
सियाह रात में सपने जवां हुए उनके <br />
तुम्हें तो जश्न की आदत है सुन सको तो सुनो<br />
<br />
जला है गाँव जले साथ अनछुए अरमां<br />
पता है किसकी शरारत है सुन सको तो सुनो<br />
<br />
लुटे-पिटे हैं मगर हौसले उबलते हैं<br />
दिलों में आग सलामत है सुन सको तो सुनो<br />
<br />
ये बाढ़ खुद ही नए रास्ते बना लेगी<br />
तुम्हारे सर पे कयामत है सुन सको तो सुनो<br />
<br />
मनाओ खैर अभी और कुछ नहीं बिगड़ा <br />
उठा लो जो भी शिकायत है सुन सको तो सुनो<br />
-वीरेन्द्र वत्स <br />
(युग तेवर में प्रकाशित)Unknownnoreply@blogger.com13tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-73435827278019183752009-11-08T05:17:00.000-08:002009-11-08T05:17:44.655-08:00...इश्क साया है आदमी के लिएदिल लगाना न दिल्लगी के लिए,<br />
ये इबादत है ज़िन्दगी के लिए.<br />
<br />
इश्क दाना है, इश्क पानी है,<br />
इश्क साया है आदमी के लिए.<br />
<br />
ये किसी एक का नहीं यारो,<br />
ये इनायत है हर किसी के लिए.<br />
<br />
मेरा हर लफ्ज़ है अमन के लिए,<br />
मेरी हर साँस बंदगी के लिए,<br />
<br />
मैं हवा के खिलाफ चलता हूँ,<br />
सिर्फ इंसान की खुशी के लिए.<br />
<br />
वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-59424538946784452322009-10-23T06:55:00.000-07:002009-11-19T12:03:36.429-08:00अथ श्री राजा- रानी कथाभौतिक सुख-सुविधाएँ जुटाने और भोगने की आपाधापी में मानवीय रिश्ते पीछे छूटते जा रहे हैं. एक-दूसरे पर शक गहरा हो चला है और दाम्पत्य बंधन भी आहत हो रहे हैं. इसी सच्चाई से परदा उठाती है यह कविता-<br />
<br />
<br />
राजा के घर चौका-बर्तन करती फूलकुमारी,<br />
छह सौ की तनख्वाह महीना, बची-खुची त्योहारी.<br />
<br />
फुर्तीली हिरनौटी जैसी पल भर में आ जाती,<br />
हँसते-गाते राजमहल के सभी काम निबटाती.<br />
<br />
श्रम का तेज पसीना बनकर तन से छलक रहा है,<br />
हर उभार यौवन का झीने पट से झलक रहा है.<br />
<br />
बीच-बीच में राजा से बख्शीश आदि पा जाती,<br />
जोड़-तोड़कर जैसे-तैसे घर का खर्च चलाती.<br />
<br />
बूढा बाप दमा का मारा खाँस रहा है घर में,<br />
घर क्या है खोता चिड़िया का बदल गया छप्पर में.<br />
<br />
रानी जगमग ज्योति-पुंज सी अपना रूप सँवारे,<br />
चले गगन में और धरा पर कभी न पाँव उतारे.<br />
<br />
नारीवादी कार्यक्रमों में यदा-कदा जाती है,<br />
जोशीले भाषण देकर सम्मान खूब पाती है.<br />
<br />
सोना-चाँदी हीरा-मोती साड़ी भव्य-सजीली,<br />
रंग और रोगन से जी भर सजती रंग-रँगीली.<br />
<br />
यह सिंगार भी राजा की आँखों को बाँध न पाता,<br />
मन का चोर मुआ निष्ठा को यहाँ-वहाँ भरमाता.<br />
<br />
राजा ने जब फूलकुमारी की तनख्वाह बढ़ाई,<br />
मालिक की करतूत मालकिन हज़म नहीं कर पाई.<br />
<br />
फूलकुमारी को रानी ने फ़ौरन मार भगाया,<br />
उसके बदले बीस साल का नौकर नया बुलाया.<br />
(हिन्दुस्तान में प्रकाशित)<br />
<br />
वीरेंद्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-65032800884763527242009-10-15T20:51:00.001-07:002009-10-15T20:51:34.976-07:00वो लाख झूठ कहें उनका एतबार करेंहम उनसे प्यार करें उनका इंतज़ार करें,<br />
मगर वो जब भी मिलें हमको बेकरार करें.<br />
<br />
समझ सके न उन्हें दोस्त हैं कि दुश्मन हैं,<br />
चला के तीरे-नज़र दिल के आर-पार करें.<br />
<br />
ये इश्क है कि नए दौर की सियासत है,<br />
गले लगा के हमें वो जिगर पे वार करें.<br />
<br />
अजीब शर्त यहाँ आशिकी निभाने की-<br />
वो लाख झूठ कहें उनका एतबार करें.<br />
<br />
हमें भी फूल चढायेंगे उनका वादा है,<br />
अगर हम उनके लिए जिस्मो-जाँ निसार करें.<br />
<br />
वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com9tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-12265716255427672522009-10-12T00:25:00.001-07:002009-10-12T00:25:49.231-07:00कौन है वह?चतुर-चंचल चाँदनी से <br />
पूछ अपनी राह<br />
पवन पागल आज आधी रात <br />
ढूंढता सा है किसी को<br />
वारि में<br />
वन में<br />
पुलिन पर<br />
व्योम में भी<br />
कौन है वह <br />
कर रहा <br />
चुपचाप<br />
प्रिय से घात???<br />
(हिन्दुस्तान में प्रकाशित)<br />
वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-14440653422084211692009-10-06T08:34:00.000-07:002009-10-06T23:24:37.991-07:00रोटी और बारूदहथियारों की होड़ आज जा पहुँची है अम्बर में,<br />
महानाश का धूम उमड़ता दुनिया के घर-घर में.<br />
<br />
खरबों की संपत्ति शत्रुता पर स्वाहा होती है,<br />
मानवता असहाय बेड़ियों में जकड़ी रोती है.<br />
<br />
चंद सिरफिरों की करनी पूरी पीढ़ी भरती है,<br />
कीड़ों सा जीवन जीती है कुत्तों सी मरती है.<br />
<br />
युद्ध समस्या स्वयं समस्या इससे क्या सुलझेगी,<br />
रोटी की मारी जनता बारूदों में उलझेगी.<br />
<br />
अणु के घातक अस्त्र जुटाए किस पर बरसाने को?<br />
चील-गिद्ध भी नहीं बचेंगे तेरा शव खाने को!!!<br />
(युग तेवर में प्रकाशित)<br />
<br />
-वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-77735374534408236972009-09-30T22:05:00.000-07:002009-10-02T09:54:41.161-07:00...समझो अपनी ताक़त भाई!!!लोकतंत्र में असली शक्ति जनता में होती है. लेकिन नेता व अफसर इस शक्ति का अपहरण कर ऐश करते हैं और जनता मुसीबतों में फंसी कराहती रहती है. जनता अगर अपनी शक्ति पहचान ले तो स्थितियां बदल सकती हैं. <br />
<br />
सब राजा हैं एक समान,<br />
सबकी है तोते में जान.<br />
<br />
तोता कुछ भी समझ न पाता,<br />
बिहग योनि पाकर पछताता.<br />
<br />
खेल-खेल में बटन दबाता,<br />
राज मिटाता राज बनाता.<br />
<br />
राजा ने इसको भरमाया,<br />
त्याग-तोष का पाठ पढ़ाया.<br />
<br />
तोता बना तभी से जोगी,<br />
राज चलाते टुच्चे-ढोंगी.<br />
<br />
चलो हकीक़त इसे बताएं,<br />
चलो नींद से इसे जगाएं.<br />
<br />
उठो-उठो अब जागो-जागो,<br />
खुला द्वार पिंजरे से भागो.<br />
<br />
किसने तुमको भांग पिलाई?<br />
समझो अपनी ताक़त भाई!!!<br />
<br />
(युग तेवर में प्रकाशित)<br />
<br />
-वीरेन्द्र वत्स Unknownnoreply@blogger.com11tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-55373891941592587422009-09-26T23:07:00.000-07:002009-09-26T23:07:16.696-07:00ज़ंग करते हुए नगमात...ये उबलते हुए जज्बात कहाँ ले जाएँ<br />
ज़ंग करते हुए नगमात कहाँ ले जाएँ<br />
<br />
रोज़ आते हैं नए सब्जबाग आंखों में<br />
ये सियासत के तिलिस्मात कहाँ ले जाएँ<br />
<br />
अमीर मुल्क की मुफलिस जमात से पूछो<br />
उसके हिस्से की घनी रात कहाँ ले जाएँ<br />
<br />
हम गुनहगार हैं हमने तुम्हें चुना रहबर<br />
अब जमाने के सवालात कहाँ ले जाएँ<br />
<br />
सारी दुनिया के लिए मांग लें दुआ लेकिन<br />
घर के उलझे हुए हालात कहाँ ले जाएँ<br />
( युग तेवर में प्रकाशित )<br />
<br />
-वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-2697261906116625912009-09-22T00:39:00.000-07:002009-09-22T00:39:22.026-07:00...नए रास्ते निकलते हैंकड़ी हो धूप तो खिल जायें गुलमोहर की तरह<br />
सियाह रात में घुल जायें हम सहर की तरह<br />
<br />
जो एक बात घुमड़ती रही घटा बनकर<br />
उसे उतार दें धरती पे समन्दर की तरह<br />
<br />
कदम बढ़ें तो नये रास्ते निकलते हैं<br />
न घर में बैठिए बेकार-बेखबर की तरह<br />
<br />
वो रास्ता ही सही मायने में मंजिल है<br />
जहाँ रकीब भी चलते हैं हमसफ़र की तरह<br />
( दैनिक हिन्दुस्तान में प्रकाशित )<br />
<br />
-वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com8tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-45469551571251603422009-09-20T14:23:00.001-07:002009-09-20T14:23:01.679-07:00अब उन्हें इस ज़मीन पर लाओ...लोग यूं बेजबान होते हैं<br />
दर्द पीकर जवान होते हैं<br />
<br />
क्यूं सुलगती सुबह की आँखों में<br />
बेबसी के निशान होते हैं<br />
<br />
हैं ये बेजान नींव की ईंटें<br />
हाँ इन्हीं से मकान होते हैं<br />
<br />
ये दिखाती हैं खिसकने का हुनर<br />
जब कभी इम्तिहान होते हैं<br />
<br />
चाँद-तारों की बात मत छेडो<br />
वो खयालों की शान होते हैं<br />
<br />
अब उन्हें इस जमीन पर लाओ<br />
जो सरे आसमान होते हैं<br />
( युग तेवर में प्रकाशित )<br />
<br />
-वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-75150058483152300292009-09-18T00:44:00.000-07:002009-09-19T14:10:01.731-07:00...दोस्त हर रिश्ते में थोड़ा फासला रखियेकौन अपना है किसी से क्यों गिला रखिये, <br />
खुद तलक पाबन्द अपना फैसला रखिये.<br />
<br />
लोग सुनकर मुस्करायेंगे, खिसक लेंगे,<br />
कैद सीने में ग़मों का ज़लज़ला रखिये.<br />
<br />
आप दिल से काम लेते हैं, कयामत है,<br />
ज़ख्मो-जिल्लत झेलने का हौसला रखिये.<br />
<br />
टूटना फिर बिखर जाना नियति है इसकी,<br />
किसलिए जारी वफ़ा का सिलसिला रखिये.<br />
<br />
यूं न मिलिए प्यास मिलने की फ़ना हो जाय, <br />
दोस्त हर रिश्ते में थोड़ा फासला रखिये.<br />
(हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित)<br />
<br />
-वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com10tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-12060763586766543022009-09-17T09:12:00.000-07:002009-09-17T09:12:24.290-07:00सोने की चिड़िया निगल गया हा! कौन बाज?जिसका गर्वोन्नत शीश युगों तक था भू पर,<br />
लहराई जिसकी कीर्ति सितारों को छूकर,<br />
जिसके वैभव का गान सृष्टि की लय में था,<br />
जिसकी विभूतियां देख विश्व विस्मय में था,<br />
वह देश वही भारत उसको क्या हुआ आज?<br />
सोने की चिड़िया निगल गया हा! कौन बाज?<br />
<br />
जिसके दर्शन की प्यास लिये पश्चिम वाले,<br />
आये गिरि-गह्वर-सिन्धु लाँघ कर मतवाले.<br />
तब कहा गर्व से सपनों का गुलजार इसे,<br />
अब वही मानते सीवर बदबूदार इसे.<br />
कारण क्या? सोचो अरे राष्ट्र के कर्णधार?<br />
संसद से बाहर भी भारत का है प्रसार!<br />
<br />
यह देश दीन-दुर्बल मजदूर किसानों का.<br />
भिखमंगों-नंगों का, बहरों का-कानों का.<br />
जब-जब जागा इनमें सुषुप्त जनमत अपार,<br />
आ गया क्रांति का-परिवर्तन का महाज्वार.<br />
ढह गए राज प्रासाद, बहा शोषक समाज.<br />
मिट गयी दानवों की माया आया सुराज.<br />
<br />
ये नहीं चाहते तोड़फोड़ या रक्तपात,<br />
ये नहीं चाहते प्रतिहिंसा-प्रतिशोध-घात.<br />
पर तुम ही इनको सदा छेड़ते आये हो.<br />
इनके धीरज के साथ खेलते आये हो.<br />
इनकी हड्डी पर राजभवन की दीवारें,<br />
कब तक जोड़ेंगी और तुम्हारी सरकारें?<br />
रोको भवनों का भार-नींव की गरमाहट,<br />
देती है ज्वालामुखी फूटने की आहट!!!<br />
( हिंदुस्तान दैनिक लखनऊ में प्रकाशित ) <br />
<br />
-वीरेन्द्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com6tag:blogger.com,1999:blog-5352775420513188361.post-13669169655477272372009-09-17T07:34:00.000-07:002009-09-17T07:37:00.846-07:00चांदनी संवरती है...रेशमी घटाओं में चाँद मुस्कराता है<br />
नर्म-नर्म ख्वाबों को नींद से जगाता है<br />
<br />
थोड़ी-थोड़ी मदहोशी थोड़ी-थोड़ी बेताबी<br />
हाँ यही मोहब्बत है ये समां बताता है<br />
<br />
चांदनी संवरती है आसमां के आँगन में<br />
सर्द झील का पानी आईना दिखाता है<br />
<br />
मनचली हवाओं से पूछता है सन्नाटा<br />
कौन आज जंगल में बांसुरी बजाता है<br />
<br />
शोख़ रातरानी यूं झूमती है शाखों में<br />
जैसे कोई दिलवर को बांह में झुलाता है<br />
<br />
यूं मना रहा कोई आसमां में दीवाली<br />
इक दिया बुझाता है सौ दिए जलाता है<br />
( हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित )<br />
<br />
-वीरेंद्र वत्सUnknownnoreply@blogger.com5