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लबों पर गालियाँ

सभा में तालियाँ हैं और हम हैं लबों पर गालियाँ हैं और हम हैं वही सपने दिखाते आ रहे हैं साठ सालों से सियासी थालियाँ हैं और हम हैं उन्हें है धर्म से मतलब, उन्हें है जाति की चिन्ता दरकती डालियाँ हैं और हम हैं ... कहीं डाका, कहीं दंगा, कहीं आतंक का साया लहू की नालियाँ हैं और हम हैं वीरेन्द्र वत्स

राजकाज

अजब नेता, अजब अफसर तरक्की का अजब खाका इन्हें ठेका, उन्हें पट्टा  यहाँ चोरी, वहां डाका बजट जितना, घोटाला कर गए उससे कहीं ज्यादा गया जो जेल प्यादा था बचे बेदाग़ फिर आक़ा मिली है जीत कुनबे को, बधाई हो-बधाई हो जियो भैया, जियो बाबू जियो लल्ला, जियो काका हुकूमत क्या मिली, सारा खजाना अब इन्हीं का है बिकी मिट्टी, बिका पानी बिका नुक्कड़, बिका नाका वहां तो महफ़िलों का दौर है, प्याले छलकते हैं यहाँ है टीस, लाचारी सुबह से रात तक फाक़ा वीरेन्द्र वत्स