...एतबार कौन करे
सुबह से शाम तलक इंतज़ार कौन करे तुम्हारे वादे पे अब एतबार कौन करे सियासी रंग में ढलने लगी मोहब्बत भी फिर ऐसी शै पे दिलो-जाँ निसार कौन करे जिसे तलाश हमारी उसे तलाश करें बड़ों के साथ बड़ा कारबार कौन करे सजा किये की अभी तक भुगत रहे हैं हम पुरानी भूल भला बार-बार कौन करे वो रहनुमा है उसे हक है जालसाजी का जो जल रहे हैं उन्हें शर्मसार कौन करे (हिन्दुस्तान दैनिक में प्रकाशित) -वीरेन्द्र वत्स